क्यों ज़्यादा भारतीय —ख़ासकर मर्द— कर रहे हैं ख़ुदकुशी, कैसे शादी बन गई है एक ख़ामोश वजह?
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नजरिया/ बृज खंडेलवाल द्वारा
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हुब्बल्ली की एक तंग-सी कोठरी में 28 साल के रमेश की अम्मा आज भी शाम होते ही उसके स्कूटर की आहट सुनने को बेचैन रहती हैं। बस 11 महीने पहले उसकी शादी हुई थी। दीवारों पर अब भी वही चमकदार, कुछ हद तक दिखावटी शादी के फ़ोटोग्राफ़ मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन उन तस्वीरों का वह नौजवान अब कहीं नहीं। उसकी मौत “शादी से जुड़े मसले” के तहत दर्ज हुई। एक ऐसा चौंकाने वाला तथ्य जिसमें वर्ष 2023 में पहली बार मर्दों की खुदकुशियाँ औरतों से ज़्यादा हुईं।
बाराबंकी के 25 साल के सुधीर कुमार ने फेसबुक पर एक ख़ौफ़नाक पोस्ट डालकर अपनी जान ले ली, इल्ज़ाम था कि उसकी बीवी और ससुरालवाले उसे लगातार सताते रहे। (10 जनवरी, 2025)
नासिक के एक 36 वर्षीय इनकम टैक्स अफ़सर ने मंगेतर द्वारा झूठे दहेज केस की धमकी मिलने पर खुदकुशी कर ली। (20 अप्रैल, 2025)
बेगूसराय में इंटर-कास्ट शादी करने वाला एक जोड़ा परिवार के विरोध से टूटकर साथ ही मौत को गले लगा बैठा। (30 जुलाई, 2025)
कोलकाता के आर.जी. कर अस्पताल के डॉक्टर दीप्र भट्टाचार्य ने बीवी को व्हाट्सऐप पर अफ़सोस भरा पैग़ाम भेजकर अपनी ‘‘नाकाम मोहब्बत’’ का ज़िक्र किया और फिर दुनिया से रुख़्सत हो गए। (8 नवंबर, 2024)
तिरुवल्लुर में नए-नवेले दूल्हे ने झगड़े के बाद बीवी को कमरे में बंद किया और खुदकुशी कर ली। (25 सितंबर, 2025)
ग्वालियर के 25 वर्षीय युवक ने खुद को आग लगा ली—प्रेमिका ने शादी का वादा तोड़कर उससे पैसे माँगे थे। (16 जून, 2025)
कर्नाटक के तुमकुरु में एक 32 साल के युवक ने अपनी मंगेतर के घर के सामने ही जान दे दी, जब उसके रिश्ते को ठुकरा दिया गया। (9 दिसंबर, 2024)
जयपुर के नरसिंहराम ने बीवी के कथित ग़ैर-मर्दाना रिश्ते के सदमे में फाँसी लगा ली। (11 अगस्त, 2025)
विजयवाड़ा के पास एक इंजीनियरिंग छात्र ने नाकाम मोहब्बत के सदमे में खुदकुशी कर ली। (6 नवंबर, 2025)
पूरे मुल्क में शादी मोहब्बत की दर्दभरी दास्तानें गूँज रही हैं—तनावग्रस्त शादियाँ, टूटते रिश्ते, झूठे इल्ज़ाम, दहेज का बोझ, सामाजिक दबाव, और मोहब्बत में धोखा। आँकड़े अब वह सब साबित कर रहे हैं जिसे घर-आँगन की ख़ामोश फुसफुसाहटें पहले ही बयान कर रही थीं: भारत में शादी एक ख़तरनाक तनाव का कारण बन चुकी है। और इस बोझ तले सबसे ज़्यादा मर्द दब रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट Accidental Deaths & Suicides in India 2023 बताती है कि पिछले साल 1,71,418 लोगों ने खुदकुशी की—2022 से 4.1% ज़्यादा, और अब तक का सबसे ऊँचा आंकड़ा। इनमें 72.8% मर्द (1,24,792) और 27.2% औरतें (46,626) थीं। मतलब हर एक औरत के मुक़ाबले करीब तीन मर्द अपनी जान ले रहे हैं।
कर्नाटक इसका साफ़ आईना है—यहाँ भी मर्दों की खुदकुशी दर औरतों से लगभग दोगुनी है। बेरोज़गारी, सामाजिक उम्मीदें, असफल रिश्ते और बढ़ती वैवाहिक बेचैनी इस मंजर को और संगीन बना रही हैं।
हर एक लाख भारतीयों पर 14.2 मर्द और 6.6 औरतें खुदकुशी कर रही हैं। ये आँकड़े उस अदृश्य बोझ को बयान करते हैं जिसे एक मर्द पूरी ख़ामोशी से ढो रहा है—कमाने वाला, संरक्षक, फ़ैसला लेने वाला; एक ऐसा किरदार जिसे आधुनिक ज़िंदगी लगातार चकनाचूर कर रही है।
भारत में “घर-परिवार की परेशानियाँ” (31.9%) और “बीमारियाँ” (19%) सबसे बड़ी वजहें हैं, लेकिन शादी से जुड़े मसले अब तीसरी सबसे गंभीर वजह बनकर उभरे हैं।
वर्ष 2015–2022 के बीच 60,000 से ज़्यादा लोगों ने शादी-संबंधित मसलों में जान दी—26,588 मर्द और 33,480 औरतें।
मगर 2023 में इतिहास पलट गया—9,043 विवाह-संबंधित खुदकुशियों में मर्द (4,863) औरतों (4,180) से ज़्यादा थे।
मर्दों के लिए सबसे बड़ी वजह है “non-settlement of marriage”—यह एक सादा-सा जुमला है, लेकिन इसके पीछे टूटे रिश्ते, टूटी सगाइयाँ, ग़लतफ़हमियाँ, आर्थिक शोषण, जज़्बाती यातना और सामाजिक दबाव छिपा है।
2015 से 2022 के बीच 10,000 से ज़्यादा मर्दों ने इसी वजह से जान दे दी।
एक्स्ट्रा-मैरिटल रिश्ते भी मर्दों को अंदर तक तोड़ते हैं—शर्म, इल्ज़ाम, रिश्ता टूटने का ख़ौफ़ और क़ानूनी धमकियाँ कई बार उन्हें ऐसे मोड़ पर ला देती हैं जहाँ वापसी मुमकिन नहीं रहती।
युवाओं में टूटती मोहब्बत का दर्द और भी शदीद है। 2021 में नाबालिगों की ‘‘लव अफेयर’’ वाली खुदकुशियों में 11% इज़ाफ़ा हुआ। पढ़ाई का दबाव, बेरोज़गारी, और जाति-सम्प्रदाय की दीवारें इस दर्द को और गहरा कर देती हैं।
दुनिया से तुलना करें तो भारत की खुदकुशी दर (12.6–13.9 प्रति 100,000)
पाकिस्तान (5.6–6.8) से ज़्यादा है—हालाँकि वहाँ आंकड़े अक्सर दीन-दरारी और सामाजिक कलंक की वजह से दबा दिए जाते हैं।
जापान (17.4–21.5) से कम है।
और फ़्रांस (16), जर्मनी (13–15) और अमेरिका (15) जैसे देशों के बराबर है।
मगर एक हैरतअंगेज़ पहलू यह है कि भारत में औरतों की खुदकुशी दर (11.6) पश्चिमी दुनिया (4–7) से दोगुनी है।
भारत में बढ़ती खुदकुशियाँ महज़ मानसिक स्वास्थ्य का मसला नहीं—ये एक समाजी, तहज़ीबी और जेंडर त्रासदी हैं।
टूटती शादियाँ, दम तोड़ती मोहब्बतें, ख़ामोशी में घुटते मर्द, और रिश्तों के जाल में फँसी औरतें… ये सब मिलकर एक गहरी इंसानी टसल की कहानी कहते हैं।
और इसका हल आँकड़ों से नहीं निकलेगा—इसका हल इंसानियत से निकलेगा। क्योंकि हर खुदकुशी एक अधूरी दास्तान है। हर एक संख्या एक ऐसी ज़िंदगी है जिसे बचाया जा सकता था।
- बृज खंडेलवाल
(लेखक आगरा के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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