हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने ताजमहल के पीछे मुंडन कराया, बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या का विरोध

आगरा, 27 दिसंबर। अखिल भारत हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने बांग्लादेश में हिंदुओं की निर्मम हत्या के विरोध में यमुना किनारे ताजमहल के पीछे मुंडन कराया और मृतात्माओं की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण किया। इसके बाद कार्यकर्ताओं ने जोरदार नारेबाजी भी की।
महासभा के संजय जाट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, मंडल अध्यक्ष मनीष पंडित एवं युवा मंडल अध्यक्ष विपिन राठौर के नेतृत्व में आधा दर्शन कार्यकर्ताओं ने बांग्लादेश के अंदर हिंदुओं की हत्या के विरोध में सिरों का मुंडन कराया।
जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने कहा कि मुंडन के बाद में गंगा नदी में तर्पण करने के लिए सोरों घाट जाएंगे, उसके पश्चात आगरा में ब्रह्म भोज करेंगे। शंकर श्रीवास्तव और नितेश भारद्वाज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन किया कि जिस तरह यूक्रेन में फंसे हुए हिंदुओं को सरकार ने वापस भारत बुलाया इसी तरह बांग्लादेश में रह रहे समस्त हिंदुओं को भारत बुलाकर पूर्ण निवास वाली योजना के तहत भारतीय नागरिकता दिलाने का काम किया जाए।
मुंडन कराने वालों में शंकर श्रीवास्तव, नितेश भारद्वाज, विपिन राठौर, टीटू, सविता, मनीष कुमार बबलू निषाद प्रमुख थे।
बांग्लादेश में बेगुनाहों पर हो रहे अत्याचार पर भारत सरकार को ठोस कदम उठाए
इस बीच हिंदुस्तानी बिरादरी के अध्यक्ष व कबीर पुरस्कार से सम्मानित डॉ. सिराज क़ुरैशी ने बांग्लादेश में हो रहे निर्दोष नागरिकों, विशेषकर अल्पसंख्यकों, पर अत्याचारों को गंभीर मानवीय संकट बताते हुए भारत सरकार से इस विषय पर स्पष्ट और प्रभावी हस्तक्षेप की माँग की है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के निर्माण में भारत की ऐतिहासिक भूमिका रही है और ऐसे में वहाँ बहाए जा रहे बेगुनाहों के खून पर भारत की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।
डॉ. क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के अस्तित्व में आने में भारत का योगदान निर्णायक रहा है। वर्ष 1971 में भारत सरकार के सहयोग से बांग्लादेश के निर्माण के समय पूरी दुनिया ने भारत की भूमिका की सराहना की थी। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में, जब बांग्लादेश में निर्दोष नागरिकों पर अत्याचार हो रहे हैं और रक्तपात की घटनाएँ सामने आ रही हैं, तब भारत सरकार की ओर से अपेक्षित कूटनीतिक और नैतिक प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि यह प्रश्न आज हर जागरूक भारतीय के मन में है कि आखिर भारत सरकार इस मानवीय संकट पर मौन क्यों है।
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