वह मुस्कुराई। उसने भुगतान किया। और फिर उसने ‘रेप’ का मुकदमा दर्ज करा दिया || अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस 2025: भारत के मर्दों की अनसुनी चीख !!
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बृज खंडेलवाल द्वारा
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12 घंटे का वह खौफ़नाक मंज़र
19 नवंबर की आधी रात—इंटरनेशनल मेन्स डे।
जब समाज के कुछ हल्के “पुरुषों के कल्याण” पर औपचारिक, खोखली बातें कर रहे थे, गुरुग्राम का 38 वर्षीय सॉफ़्टवेयर इंजीनियर पुलिस लॉकअप की ठंडी, दमघोंटू दीवारों के बीच अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े अपमान का ज़हर निगल रहा था।
उसका जुर्म? न ज़ोर-ज़बरदस्ती। न हिंसा। उसकी “ग़लती” थी—एतबार। वह लड़की से Bumble पर मिला। बातचीत हुई, हँसी-मज़ाक हुआ, एक होटल में गए। सब कुछ रज़ामंदी से हुआ। वह मुस्कुराई। वह मान गया। कुछ घंटों बाद मुस्कान गायब… और फ़ंदा कस गया।
अचानक, वह क़रीबी पल “सबूत” बन गए। उसने धमकी दी: वीडियो लीक कर दूँगी। ख़ामोशी की क़ीमत? 2 लाख रुपये।
जब उसने ब्लैकमेल के आगे सरेंडर करने से इनकार किया, उसने वे चार अल्फ़ाज़ कहे जो भारत में किसी भी मर्द की ज़िंदगी खा सकते हैं: “उसने मेरा रेप किया।” लेकिन सुबह होते-होते, यह रैकेट बेनक़ाब हो गया और लड़की गिरफ़्तार भी।
परन्तु तब तक उस इंजीनियर की दुनिया तबाह हो चुकी थी। इज़्ज़त बिखर चुकी थी। ऑफ़िस में फुसफुसाहटें ज़हर बन चुकी थीं। बूढ़े माँ-बाप, ग़म से भी गहरी ख़ामोशी में डूब गए थे। वह पुलिस लॉकअप से तो बरी होकर बाहर आया, मगर समाज ने उसे हमेशा के लिए मुजरिम क़रार दे दिया।
उसी रात, देश के एक और कोने में एक नौजवान ने ख़ुदकुशी कर ली—उसी तरह के एक सेक्सटॉर्शन जाल में फँसकर।
ये कोई तुनकमिजाज, अकेली खबरें नहीं हैं। ये उस टूट चुके तंत्र या वैल्यू सिस्टम के बहते हुए ज़ख़्म हैं, जहाँ मर्द शिकार हैं, ब्लैकमेल एक मुनाफ़े का धंधा है, और जेंडर-विशिष्ट क़ानून हथियार बन चुके हैं।
पिछले 18 महीनों में देश की अदालतें एक तल्ख़ हक़ीक़त से भर चुकी हैं, कुछ औरतें वही क़ानून इस्तेमाल कर रही हैं जो उन्हें हिफ़ाज़त देने के लिए बने थे। यह है उस नए जुर्म की अज़ीम दास्तान:
8 करोड़ की दुल्हन: कानपुर (नवंबर 2025) की दिव्यांशी—"कॉन ब्राइड"—ने झूठी शादी और फ़र्ज़ी रेप केस की धमकियों से कम-से-कम 12 मर्दों को ठगा। कुल माल—8 करोड़ रुपये।
1 करोड़ का ब्लैकमेल: मुंबई (अगस्त 2025) की बैंक कर्मचारी ने अपने एक्स-पार्टनर पर झूठा रेप लगाकर 1 करोड़ रुपए मांग लिए।
इंतक़ाम की कैद: लखनऊ (नवंबर 2025) की 24 वर्षीय लड़की—सिर्फ़ बदला लेने के लिए फ़र्ज़ी रेप केस—42 महीने की सज़ा।
जाति को हथियार बनाना: रेखा देवी (लखनऊ, जून 2025) को 7.5 साल, SC/ST एक्ट और फ़र्ज़ी गैंगरेप केस, सिर्फ़ दो मर्दों से वसूली के लिए।
ये हादसे अपवाद नहीं, ये उस ढहते हुए सिस्टम की आख़िरी चीखें हैं।
इल्ज़ाम लगते ही सज़ा: क़ानून की यह कैसी नाइंसाफ़ी? भारत का क़ानूनी ढाँचा एक अजीब और ज़ालिम विडंबना है: धारा 375 (रेप क़ानून): पीड़ित सिर्फ़ “महिला”, और अपराधी सिर्फ़ “पुरुष”
घरेलू हिंसा क़ानून: “शौहर हमेशा गुनहगार” मान लिया जाता है। मर्दों के पास कोई बराबर का कानूनी सहारा नहीं। तमाम दुखी आत्माएं बता रही हैं, कि पत्नियां भी कम नहीं हैं पीटने में, कई केसेज में मर्दों को लिंग विहीन भी किया जा चुका है। नतीजा ये होता है कि रज़ामंदी वाले रिश्ते भी “शादी का झाँसा देकर बलात्कार” बन जाते हैं। डेटिंग ऐप के रिश्ते—ब्लैकमेल का औज़ार बन रहे हैं।
वर्ष 2023 में हरियाणा में जितने रेप केस अदालतों से बाहर हुए, उनमें से लगभग आधे (1,798 में से 814) झूठे पाए गए।
अदालतें और वकील चीख-चीखकर कह रहे हैं, ब्रेकअप के बाद रेप केसों में “ख़तरनाक इज़ाफ़ा” हुआ है।
तेज़-तर्रार फास्ट-ट्रैक अदालतें अब बेक़सूर मर्दों के लिए तेज़ी से नाइंसाफ़ी पहुँचाने वाली मशीन बन चुकी हैं। FIR में ‘रेप’ का शब्द आते ही जमानत एक भूत बन जाती है।
मर्द का ख़ामोश जनाज़ा निकल रहा है। हर एक बेनक़ाब ब्लैकमेलर के पीछे—हज़ारों मर्द—ज़िंदगी से हार जाते हैं। उनके लिए न मोमबत्ती मार्च, न मंत्री का ट्वीट, न न्याय की पुकार। वे बस गुम हो जाते हैं। उनका नाम, उनकी इज़्ज़त सब राख हो जाती है। माएँ मुँह छुपा लेती हैं। बाप घर से निकलना बंद कर देते हैं। बीवियाँ तलाक़ के काग़ज़ थमा देती हैं। बरी हुआ मर्द भी, भारत में हमेशा के लिए दोषी ही माना जाता है। इस माहौल में लोग शादी करने से ही डरने लगे हैं।
अब वक़्त है बदलने का, अब नहीं तो कभी नहीं। भारत को आज फ़ौरन यह स्वीकारना होगा: जेंडर-न्यूट्रल रेप लॉ, जुल्म जुल्म है, चाहे पीड़ित का जेंडर कोई भी हो। क़ानून को यह मानना ही होगा। बराबर का कानूनी सहारा, ज़ुल्म, चाहे जज़्बाती हो या जिस्मानी मर्दों को भी संरक्षण मिले। झूठे केसों पर सख़्त सज़ा मिले। फ़र्ज़ी इल्ज़ाम उतनी ही बड़ी सज़ा है जितना असली जुर्म।
यह लड़ाई मर्द बनाम औरत की नहीं। यह जंग है— न्याय बनाम नाइंसाफ़ी, इंसाफ़ बनाम जेंडर का हथियार।
अगर यह मुल्क अपने बेटों की रक्षा नहीं कर सका तो एक दिन अपनी बेटियों की हिफ़ाज़त का हक़ भी खो देगा।
- बृज खंडेलवाल
(लेखक आगरा के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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