2030 तक बवासीर एक गंभीर स्वास्थ्य संकट: वैज्ञानिक विश्लेषण, रोकथाम और समाधान की दिशा

लेखक: डॉ. करण आर. रावत, गैस्ट्रो सर्जन एवं प्रॉक्टोलॉजिस्ट, आगरा
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बढ़ती चिंता: क्यों तेजी से बढ़ रहे हैं पाइल्स (बवासीर) के मामले?
बवासीर, जिसे चिकित्सकीय रूप से हेमोरॉयड्स कहा जाता है, तेजी से उभरती हुई समस्या बन गई है। डॉक्टरों और स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार, यदि वर्तमान जीवनशैली में बदलाव नहीं किया गया तो वर्ष 2030 तक देश में हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी गुदा रोग से प्रभावित हो सकता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) सहित कई शोध संस्थाओं ने चेतावनी दी है कि यह समस्या विशेष रूप से शहरी आबादी, युवा वर्ग और दफ्तरों में लंबे समय तक बैठने वालों में अधिक बढ़ रही है।

मुख्य कारण क्या हैं?
1. फाइबर की कमी वाला भोजन– रिफाइंड फूड, फास्ट फूड, अधिक मिर्च-मसाला।
2. लंबे समय तक बैठना– विशेष रूप से ऑफिस वर्कर्स में।
3. पानी का कम सेवन– शरीर में डिहाइड्रेशन से कब्ज और मल त्याग में कठिनाई।
4. तनाव व अनियमित जीवनशैली– जो पाचन तंत्र पर सीधा असर डालते हैं।
5. गर्भावस्था के बाद की स्थितियां– महिलाओं में पाइल्स की बड़ी वजह।

समझदारी से बचाव: क्या करें, क्या न करें
रोकथाम इलाज से बेहतर है– इस सिद्धांत को अपनाते हुए यदि हम कुछ आदतें सुधार लें तो बवासीर जैसी स्थिति से बचा जा सकता है:
क्या करें ✅              क्या न करें ❌
✅ फाइबर युक्त आहार लें (फल, हरी सब्जियाँ)। ❌ तले-भुने और रिफाइंड आहार से बचें।
✅ दिन में 8–10 गिलास पानी पिएं। ❌ शौच में देर लगाना या ज़्यादा देर बैठना |
✅  रोजाना 30 मिनट टहलना या योग।❌ लगातार घंटों तक बैठना।
✅  समय पर मल त्याग की आदत।  कब्ज को नजरअंदाज करना।

उन्नत उपचार: लेजर तकनीक एक आशाजनक समाधान
जहां पहले पाइल्स का इलाज ओपन सर्जरी और दर्द भरे टांकों से होता था, वहीं अब लेजर आधारित इलाज ने नई राह दिखा दी है। यह एक दर्द रहित प्रक्रिया है, जिसमें ऑपरेशन के दौरान और बाद में न्यूनतम तकलीफ होती है। रोगी को 24 घंटे में छुट्टी मिल जाती है और वह जल्द सामान्य जीवन में लौटता है। इस विधि में बिना कट के सर्जरी की जाती है, जिसमें टांका और टांका कट की ज़रूरत नहीं होती, साथ ही कम रक्तस्राव, कम संक्रमण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्नत तकनीकों के उपयोग से 75% से अधिक गुदा रोगों में जटिलता और दीर्घकालिक दुष्प्रभावों में कमी आई है।
भारत को वर्ष 2030 तक बवासीर व अन्य गुदा रोगों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जनजागरूकता अभियान शुरू करना होगा। जिसमें प्राथमिक स्कूलों से ही पोषण शिक्षा अनिवार्य हो। सरकारी अस्पतालों में प्रॉक्टोलॉजी क्लीनिक और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं। शर्म नहीं, समाधान खोजें जैसे अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जाए। स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में गुदा रोगों को भी शामिल किया जाए।
बवासीर कोई छुपाने वाली बीमारी नहीं है – यह एक सामान्य और पूरी तरह इलाज योग्य स्थिति है। समय रहते सही जानकारी, सही जीवनशैली और उन्नत चिकित्सा तकनीक को अपनाकर न केवल इससे बचा जा सकता है, बल्कि जो लोग इससे जूझ रहे हैं, वे भी पूर्ण राहत पा सकते हैं।
“स्वस्थ जीवनशैली ही सच्चा निवेश है – आइए, जागरूक बनें और 2030 तक बवासीर मुक्त भारत की ओर कदम बढ़ाएं।”
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