Exclusive: नेशनल चैम्बर में ट्रेडर्स के बढ़ते वर्चस्व को कम करने की तैयारी! उद्यमियों के साथ बिगड़ते संतुलन पर चिंता

आगरा, 05 दिसम्बर। नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स यूपी आगरा में ट्रेडर्स के बढ़ते वर्चस्व को कम करने की तैयारी है। हालांकि इसमें थोड़ा समय लग सकता है। इसके लिए चरणबद्ध तरीके से उपाय किए जाएंगे। पहले चरण के रूप में अगले सोमवार को प्रस्तावित कार्यकारिणी की बैठक में संस्था का संविधान संशोधन पांच साल में किए जाने की बाध्यता खत्म करने का प्रस्ताव लाया जा सकता है।
दरअसल, कभी उद्यमियों के बहुमत वाली इस संस्था में अब ट्रेडर्स की बहुलता हो चली है। दूसरी ओर उद्यमियों की नई पीढ़ी ने चैंबर से दूरी बना ली है। इससे संस्था में उद्यमियों और व्यापारियों के बीच संतुलन बिगड़ता नजर आने लगा है। वरिष्ठ उद्यमियों का एक वर्ग इन हालात से चिंतित है। उनका मानना है कि उद्यमियों की नई पीढ़ी की उदासीनता के कारण संस्था की चमक-धमक कम हो रही है।
वर्तमान हालात पर चिंतित वरिष्ठ उद्यमियों की विगत एक दिसंबर को बैठक भी हुई, जिसमें तय किया गया कि संस्था के संविधान में एक बार फिर संशोधन कर नियमों को कड़ा किया जाए। बैठक में कहा गया कि संविधान संशोधन एक गहन प्रक्रिया है। इसमें तीन-चार महीने का समय लग सकता है। इधर मार्च में प्रस्तावित वार्षिक चुनावों के लिए हलचल शुरू हो चुकी है। दिसंबर अंत तक चुनाव संबंधी कार्य शुरू हो जाएंगे। इसलिए इतने कम समय में संविधान में संशोधन टेढ़ी खीर होगा। 
इसलिए बैठक में वरिष्ठ सदस्यों ने एक राय होकर तय किया कि इसके लिए सबसे पहले संविधान में पांच साल बाद संशोधन का नियम खत्म किया जाए। चैंबर संविधान के मुताबिक, किसी भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव को कार्यकारिणी में पारित कराने के न्यूनतम 23 दिन बाद सामान्य सभा में पारित कराना होता है। कोशिश है संविधान संबंधी प्रस्ताव कार्यकारिणी में पारित कराए जाने के बाद सामान्य सभा में भी पारित करा लिया जाए और उसके बाद अप्रैल से शुरू होने वाले नए सत्र में संविधान संशोधन समिति गठित कर नियमों में फेरबदल कर लिया जाए।
माना जा रहा है कि नए नियमों में सदस्यों का दो प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है। सक्रिय सदस्य और सामान्य सदस्य। सक्रिय सदस्यों का सालाना शुल्क कई गुना बढ़ाया जा सकता है और मताधिकार भी केवल सक्रिय सदस्यों तक सीमित किया जा सकता है। कुछ सदस्य लचीले नियमों का लाभ उठाकर राजनीतिक संस्थाओं से भी जुड़े रहते हैं। इसके लिए भी स्पष्ट प्रावधान किया जा सकता है।
गौरतलब है कि एक साल पहले ही संविधान संशोधन समिति बनाकर संशोधन लागू किए गए थे। उस समिति में सक्रिय रहे वरिष्ठ सदस्यों ने भी मान लिया है कि उनके द्वारा किए गए संशोधनों में सुधार की जरूरत है। 
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