दसवें नेशनल हैंडलूम दिवस पर कई प्रांतों के परिधानों की रैम्प पर दिखी चमक
आगरा, 07 अगस्त। वर्ल्ड डिजायनिंग फोरम द्वारा बुधवार को दसवां नेशनल हैंडलूम दिवस फतेहाबाद रोड स्थित केएनसीसी बैंक्वेट हॉल में आयोजित किया गया। देश भर से आए 80 फैशन डिजायनर व बनकरों द्वारा कच्छ का काला कॉटन, बिहार का टसर सिल्क, टसर कॉटन, गुजरात का पटोला फेब्रिक के परिधान, मध्य प्रदेश का माहेश्वरी सिल्क, कॉटन, मंगलकारी सिल्क और कॉटन के परिधानों को धारण किए मॉडल्स ने रैम्प पर कैट वॉक कर समां बांध दिया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ मण्डलायुक्त ऋतु माहेश्वरी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। शेखर दीक्षित व वर्ल्ड डिजायनिंग फोरम के सीईओ अंकुश अनामी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की कला और संस्कृति को जीवित रखना है तो हमें बुनकरों को प्रोत्साहित करना होगा।
सभी फैशन डिजायनरों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सृष्टि कुलश्रेष्ठ, वाईके गुप्ता, टैक्सटाइल एसोसिएशन के चेयरमैन संजीव अग्रवाल, शरत चंद्रा, भारतीय विद्या परिषद के अध्यक्ष, रेणुका डंग, पूनम सचदेवा, एफडीडीआई के सचिव पंकज सिन्हा, रजत सिंह, ओम श्रीवास्तव, खुशी, गौरी चौधरी, तान्या रावत, गौरव दीक्षित, जितेंद्र चौहान उपस्थित थे।
कार्यक्रम में लखनऊ से आई प्रियंका सिंह ने कहा कि चिकनकारी अब खादी और लिलन कॉटन पर भी पसंद की जा रही है। चिकनकारी के लहंगे भी तैयार हो रहे हैं, जिन्हें बनाने में कम से कम 5-6 माह का वक्त लग जाता है।
गुजरात की पूर्वा बुच ने नीम से तैयार रंगों से परिधान को रंगा तो वहीं केरल से यी बीना अरुण अपने साथ केले के तने के फाइबर से तैयार बेल्ट, पर्स, जूते, चप्पल टेबिल मेट साथ लेकर आईं जो तीन पीढ़ियों तक प्रयोग करने पर खराब नहीं होते और ईको फ्रेंडली भी हैं।
छह माह लगते हैं पटोला सिल्क की साड़ी तैयार करने में
गुजरात से आए महेश गोहिल अपनी परिवार में तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं जो पटोला सिल्क के परिधान ताना-बाना से तैयार करते हैं। एक साड़ी तैयार करने में 6 माह लग जाते हैं, जिसकी कीमत बुनकरों को लगभग एक लाख और शोरूम में तीन लाख तक हो जाती है।
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