महापौर का नगर आयुक्त पर फिर हमला - बिना टेंडर जारी किए बढ़ा दिया ठेका, अनियमितताओं से घिरी है फर्म, नहीं दी गई कार्यकारिणी को जानकारी
आगरा, 30 सितम्बर। नगर निगम की महापौर और नगर आयुक्त के बीच अघोषित तौर पर खिंची तलवारें अभी वापस म्यान में नहीं जा पाई हैं। एक बार फिर महापौर हेमलता दिवाकर कुशवाह ने नगर आयुक्त अंकित खंडेलवाल को कठघरे में खड़ा किया है। आश्चर्य है कि नगर निगम से लेकर राज्य और केंद्र में भी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार को यह सब नजर नहीं आ रहा है। इससे पार्टी की छवि भी प्रभावित हो रही है।
ताजा मामले में मेयर ने आउटसोर्सिंग सेवा प्रदाता फर्म का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, बिना किसी निविदा प्रक्रिया में शामिल किए, फर्म के ठेके की अवधि को बढ़ाने के मामले में वित्तीय अनियमितता मानते हुए नगरायुक्त को पत्र लिखकर जवाब मांगा है।
कहा गया है कि नगर निगम में विभिन्न आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को उपलब्ध कराने वाली सेवा प्रदाता फर्म मै. अग्रवाल एन्ड कम्पनी का ठेके का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी लगातार ठेके की अवधि को बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के बढ़ाया जा रहा है, जबकि ठेका समाप्त होने के बाद नगर निगम आगरा द्वारा जेम पोर्टल के माध्यम से टेंडर जारी होने के बाद ही किसी फर्म को नियमानुसार ठेका मिलना चाहिए।
महापौर ने नगरायुक्त को पत्र में लिखा है- “संज्ञान में लाया गया है कि नगर निगम आगरा में आउटसोर्सिग सेवा प्रदाता फर्म मै. अग्रवाल एन्ड कम्पनी का निविदा की शर्तों के अनुसार विगत वर्षों में ही इनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है, लेकिन नगर निगम द्वारा नई निविदा प्रकिया न अपनाये जाने के कारण मै. अग्रवाल एन्ड कम्पनी का कार्यकाल बिना महापौर या कार्यकारिणी के संज्ञान में लाये ही फर्म के कार्य के लिए समयवृद्धि आपके स्तर से कर दी जाती है, जिसके कारण इस फर्म द्वारा व्यापक अनियमिततायें किये जाने की शिकायतें प्राप्त हो रही हैं।“
महापौर व कार्यकारिणी के समक्ष नहीं रखा प्रकरण
महापौर ने पत्र में नगरायुक्त से जवाब मांगा है कि “शासन द्वारा जेम पोर्टल की साइड से ई-निविदा के माध्यम से आउटसोर्सिग सेवा प्रदाता फर्म हायर किये जाने की पारदर्शी व्यवस्था के तहत किये जाने के निर्देश दिये हैं, परन्तु इस प्रकरण में नगर निगम स्तर पर ऐसी क्या कठिनाई सामने आ रही है जिसके कारण बार-बार वित्तीय अनियमिततायें करने वाली ही फर्म का कार्यकाल बढ़ा दिया जाता है और इस सम्बन्ध में न तो महापौर के संज्ञान में लाया जाता है और न ही प्रकरण को कार्यकारिणी समिति के समक्ष रखा जाता है। वर्णित प्रकरण के सम्बन्ध में प्राथमिकता के आधार पर पत्रावली सहित अविलम्ब आख्या उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित करें।“
हालांकि महापौर पहले भी पत्र लिख कर कई मुद्दों को उठा चुकी हैं, लेकिन या तो जवाब नहीं दिया गया या फिर आधी अधूरी जानकारी दी गई। देखना होगा कि इस बार लिखे गए पत्र का कितना असर होता है।
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