राजेंद्र रघुवंशी को समझना, एक परंपरा को समझने जैसा, पुस्तक स्वगत कथन का लोकार्पण
आगरा, 20 जुलाई। नाट्य पितामह स्वर्गीय राजेंद्र रघुवंशी की पुस्तक स्वगत कथन का लोकार्पण समारोह शनिवार को सेठ पदम चंद जैन इंस्टीट्यूट के सभागार में हुआ। लोकार्पण समारोह में राजेंद्र रघुवंशी के जीवन, स्वतंत्रता आंदोलनों में उनकी भूमिका, उनके सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोणों पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे।
कार्यक्रम की शुरुआत में राजेंद्र रघुवंशी के चित्र पर माल्यार्पण किया गया। इसके बाद आगरा इप्टा के कलाकारों ने परमानंद शर्मा के संगीत निर्देशन में राजेंद्र रघुवंशी द्वारा लिखित गीत सुनाए। जिनमें सूखी धरती के आंचल से उठती आज पुकार, जागो, जागो रे...दूसरा गीत सुनाया गया बाधक हो तूफान बवंडर, नाटक नहीं रूकेगा साथी...तीसरा गीत मलिनिया कैसो है श्रृंगार, बात बात उबटन लगाए के, अपना रूप ले निखार.... चौथा गीत बारी जोगनिया तेरी लांगुर चिरिया लेके उड़ गई सुनाए। इसके बाद राजेंद्र रघुवंशी पर बनी नाटक नहीं रुकेगा फिल्म भी प्रस्तुत की गई। जिसका लेखन एवं निर्देशन दिलीप रघुवंशी ने किया।
समारोह की अध्यक्षता प्रो. कमलेश नागर ने की। मुख्य वक्ता लखनऊ से आए वीरेंद्र यादव (वरिष्ठ आलोचक) थे। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ संस्कृतकर्मी राकेश वेदा थे। पुस्तक की संपादक डॉ. ज्योत्सना रघुवंशी ने कहा कि पिता राजेंद्र रघुवंशी की किताब के लिए 25 साल पहले 5 रजिस्टर मिले थे। 1000 पन्ने थे, कई टुकड़ों में टाइप हुई, एडिटिंग हुई। अपने पिता के पूरे जीवन के बारे में कई बार पढ़ा। उन्होंने अपने परिवार, अपनी मां, बहन, के बारे में कई बातें लिखी थीं। संपादन के दौरान कई बार ऐसा लगा कि अपने पिता के जीवन का यह पहलू तो हमें पता ही नहीं था। उन्होंने केवल अपने लिए नहीं लिखा, उन्होंने हर आंदोलन के बारे में लिखा, चाहे उनमें वो खुद शामिल हो या अपने साथियों के माध्यम से शामिल हों।
विशिष्ट अतिथि राकेश वेदा ने कहा कि राजेंद्र रघुवंशी के पास जो धैर्य था, वो मुझमें होता तो मैं उन पर एक पूरी किताब लिख देता। मैं यह कह सकता हूं कि मैंने राजेंद्र रघुवंशी को देखा है। राजेंद्र रघुवंशी कई नाटककारों, अभिनेताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों, संगीतज्ञ, गीतकारों का मिश्रण हैं। जैसा मैंने सुना है कि टैगोर के बारे में कहा जाता है कि वो सब कुछ थे, उसी तरह राजेंद्र रघुवंशी भी थे। वो एक खांचे में कई रूप थे। वो लोहे की तरह तपे थे। वो जल्दी लोगों को पहचान लेते थे, वो नौजवानों की प्रतिभा की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करते थे। राकेश वेदा ने उनके जीवन से जुड़े कई किस्से सुनाए।
समारोह के मुख्य वक्ता वीरेंद्र यादव ने कहा कि इस किताब में एक व्यक्ति की जीवन गाथा ही नहीं बल्कि स्वगत समाज कथन और जगत कथन भी है। इतिहास को भुलाया जा रहा है, स्मृतियों को भुलाया जा रहा है, मूल्यवान जो भी है, उस सब को भुलाया जा रहा है। ऐसे समय में स्मृतियों को संजोना, उसे लिपिबद्ध करना, जरूरी काम है। इस किताब से जितना उन्हें जानने का मौका मिला है, वो पूरी परंपरा को समझने जैसा है। उनकी पारिवारिक विरासत की जानकारी मिली। इस किताब से जाना कि इप्टा सिर्फ मंच पर नाटक करना नहीं था, बल्कि हर आंदोलन में इप्टा की सहभागिता भी रही है।
समारोह की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. कमलेश नागर ने कहा कि राजेंद्र रघुवंशी ने जो भी लिखा वो इरादतन नहीं लिखा, उन्होंने जो भी लिखा है वो अपने मन की, जीवन की, अपनी यात्रा की बात लिखी है। यह पुस्तक उस दौर का ग्रंथ है। राजेंद्र रघुवंशी एक संस्था थे। उन पर शोध हो सकती है कि एक अकेला व्यक्ति इतने रूपों को कैसे संभाल सकता है। इस पुस्तक के आधार पर कई पुस्तकें निकलेंगी।
समूह गायन किया असलम खान, मुक्ति किंकर, जय कुमार, मिथुन चौहान, अंकित श्रीवास्तव ने और ढोलक पर संगत की राजू ने। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत कुमकुम रघुवंशी, प्रमोद सारस्वत, भावना रघुवंशी ने किया। संचालन हरीश चिमटी ने किया। आभार दिलीप रघुवंशी ने व्यक्त किया।
इस अवसर पर डॉ.जवाहर सिंह धाकरे, अरुण डंग, प्रो. रामवीर सिंह, प्रो.जय सिंह नीरद, प्रो.नसरीन बेगम, रविंद्र रघुवंशी, पूरन सिंह, डॉ. कुसुम चतुर्वेदी, अनिल शुक्ला, नीरज जैन, डॉ.सुषमा सिंह, डॉ. जेके टंडन, डॉ. मुनीश्वर गुप्ता, ओमप्रकाश प्रधान, नीरज मिश्रा, डॉ.युवराज सिंह, अनिल जैन, उमाशंकर मिश्रा, गिरीश गुप्ता, संजय गुप्ता, शरद गुप्ता और उनके परिवार के लगभग सभी सदस्य उपस्थित रहे।
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