भारत “स्कैम फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड” बनने की राह पर: ठगी की अर्थव्यवस्था का काला चेहरा
आगरा, 03 नवम्बर। फर्ज़ी डायबिटीज़ इलाज से लेकर सियासी रिश्वतों तक, हनी ट्रैप से लेकर क्रिप्टो ठगी तक। आज का भारत एक धोखाधड़ी के मेले में बदल चुका है, जहाँ ईमान की जगह चालाकी फल-फूल रही है। हर क्लिक के पीछे कोई जाल है, हर वादा एक फ़रेब।
गृहिणियाँ “ऑनलाइन जॉब्स” के नाम पर ठगी का शिकार हो रही हैं, कारोबारी साइबर माफ़िया से लुट रहे हैं और युवा “डिजिटल ब्लैकमेल” में फँस रहे हैं। संसद से लेकर प्राइवेट क्लीनिक तक, सड़ांध गहरी है। कभी अध्यात्मिक संपदा के लिए मशहूर भारत अब “स्कैम फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड” बनने की राह पर है।
भारत की ठगी इंडस्ट्री सिर्फ़ ज़िंदा नहीं, बल्कि तेज़ी से फैल रही है। सरकारी और साइबर सुरक्षा रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2025 के अंत तक भारतीय ₹20,000 करोड़ से ज़्यादा रकम केवल ऑनलाइन ठगी में गँवा देंगे। पिछले वर्ष की तुलना में 200% वृद्धि होगी। डिजिटल औज़ार— UPI, सोशल मीडिया, इंस्टेंट पेमेंट और स्मार्टफ़ोन, जो डिजिटल क्रांति की पहचान थे, अब ठगों के हथियार बन चुके हैं।
आईटी एक्सपर्ट विकास कहते हैं, “एक साधारण मैसेज‘आपका KYC एक्सपायर हो रहा है’ या कोई जादुई जॉब ऑफर, आपकी तबाही की शुरुआत हो सकता है। गृहिणियाँ ‘ऑनलाइन टास्क’ के झाँसे में फँसती हैं, छात्र ‘प्रोसेसिंग फ़ीस’ देकर नौकरियों के जाल में जाते हैं, और बैंकर्स-इंजीनियर्स तक एआई जनरेटेड स्कैम में उलझ रहे हैं।”
एक अरब से ज़्यादा UPI यूज़र्स का डाटा अब ठगों के लिए मछली पकड़ने की झील बन चुका है। एक QR कोड स्कैन करते ही खाता साफ़, एक फर्ज़ी लिंक पर क्लिक करते ही हज़ारों रुपये गायब। अनुमान है कि 2025 में एक लाख से ज़्यादा UPI स्कैम मामलों में ₹3,000 करोड़ का नुकसान होगा।
आम आदमी औसतन ₹1,000 से ₹5,000 तक गँवाता है, पर करोड़ों पीड़ित जब एक साथ जुड़ते हैं, तो यह नुकसान पहाड़ बन जाता है। पुलिस मुश्किल से 20% रकम ही ट्रेस कर पाती है; बाकी “म्यूल अकाउंट्स” के ज़रिए विदेशी सर्वरों पर गायब हो जाती है। पुरानी पोन्ज़ी स्कीम अब डिजिटल रूप में लौट आई हैं। फर्ज़ी ट्रेडिंग ऐप्स, क्रिप्टो कॉइन्स और AI बॉट्स “डबल इनकम” का सपना दिखाकर जेबें खाली कर रहे हैं। इस वर्ष अब तक ऐसे 30,000 से ज़्यादा इन्वेस्टमेंट स्कैम हुए और ₹1,500 करोड़ डूब गए।
पिछले कुछ खुलासों से पता चला कि इन ठगी नेटवर्क के धागे दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़े हैं। म्यांमार और कंबोडिया के फर्ज़ी कॉल सेंटरों से भारतीय बोलने वाले गैंग 24 घंटे लोगों को लूटते हैं। डीपफेक CEOs, “वेरिफाइड” वेबसाइटें और नकली इंफ्लुएंसर्स पीड़ितों को भरोसा दिलाते हैं—जब तक उन्हें सच्चाई का एहसास होता है, सर्वर बंद हो चुके होते हैं और पैसा गायब।
सिर्फ़ दिल्ली में ही ₹300–400 करोड़ डिजिटल इन्वेस्टमेंट ठगी में गँवाए गए, लेकिन रिकवरी 20% से भी कम रही। शर्म और संसाधनों की कमी के चलते अधिकांश केस बिना आवाज़ के दफन हो जाते हैं।
कंप्यूटर कारोबारी चतुर्भुज तिवारी कहते हैं, “सबसे डरावनी ठगी है ‘डिजिटल अरेस्ट स्कैम।’ किसी वर्दीधारी अफसर का वीडियो कॉल आता है, जैसे असली पुलिस स्टेशन में बैठा हो, दीवार पर बैज, मेज़ पर फाइलें और कहता है, ‘आप मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जांच के अधीन हैं।’ सारा दृश्य असली लगता है, पर यह पूरा डिजिटल झूठ होता है।” ठग “CBI” या पुलिस बनकर फर्ज़ी वारंट भेजते हैं और “ज़मानत” के नाम पर लाखों रुपये वसूलते हैं। इस वर्ष 80,000 से ज़्यादा भारतीय इस स्कैम में फँसे और ₹6,000 करोड़ गँवा चुके हैं।
बेरोज़गारी और असुरक्षा के दौर में जॉब स्कैम महामारी बन चुके हैं। बीस हजार से ज़्यादा लोगों ने व्हाट्सएप और लिंक्डइन पर फर्ज़ी जॉब ऑफर्स के चलते पैसा गँवाया। ठग कंपनियों के लोगो क्लोन करते हैं, HR प्रोफाइल बनाते हैं, और “ट्रेनिंग फीस” या “वेरिफिकेशन चार्ज” माँगते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता बताती हैं, “अब शिक्षा जगत भी अछूता नहीं। एक मशहूर कोचिंग संस्थान के नाम पर साइबर ठगों ने ₹800 करोड़ ठग लिए। हर गिरफ्तारी के बाद दस नए रिक्रूटर उभर आते हैं, और अब तो AI चैटबॉट्स इंटरव्यू तक लेते हैं ताकि ठगी असली लगे।”
अभिषेक का कहना है, “सबसे दर्दनाक ठगी वही है जो भरोसे का फ़ायदा उठाती है।” ऑनलाइन विवाह बाज़ार में हज़ारों महिलाएँ फर्ज़ी दूल्हों के जाल में फँस रही हैं—NRI, डॉक्टर या CEO बनकर ठग लाखों रुपये ऐंठ लेते हैं। AI से एडिट की गई तस्वीरें, विदेशी लहज़े की नकली बातचीत, और फिर “वीज़ा”, “कस्टम्स” या “मेडिकल” का बहाना—ठगी पूरी हो जाती है। अकेले 2025 में ₹1,000 करोड़ से ज़्यादा ऐसे मामलों में गँवाए गए। कई केस शर्म या डर के कारण सामने नहीं आते।
साइबर पत्रकार विष्णु कहते हैं, “AI अब ठगों का सबसे बड़ा हथियार है। इस वर्ष अब तक 15,000 वॉइस-क्लोनिंग स्कैम दर्ज हुए—पिछले साल की तुलना में दोगुना। सोचिए, आपकी बेटी की आवाज़ में कॉल आता है—‘पापा, मैं मुसीबत में हूँ, तुरंत पैसे भेजो।’ आवाज़ नकली, डर असली।” डीपफेक्स ने सच और झूठ की सरहद मिटा दी है। ठग CEOs, अफ़सरों और सेलिब्रिटीज़ की आवाज़ें क्लोन करके पैसे माँगते हैं। एक केस में टेलीकॉम टायकून की आवाज़ से करोड़ों निकलवा लिए गए। साल भर में ऐसे स्कैम से ₹1,000 करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हुआ।
इन सबका असर केवल आर्थिक नहीं, मानसिक भी है। डिप्रेशन, पैरानॉया और समाज से दूरी। एक पीड़ित ने कहा, “उन्होंने सिर्फ़ मेरा पैसा नहीं लूटा, मेरा भरोसा भी मार दिया।”
तकनीक ने हमें ताक़त दी थी, लेकिन जागरूकता के बिना वही ताक़त अब असहायता का प्रतीक बन गई है। आज “डिजिटल इंडिया” के चमकते पर्दे के पीछे “स्कैमिस्तान” की स्याही गहराती जा रही है।
रिपोर्ट - बृज खंडेलवाल, वरिष्ठ पत्रकार आगरा।
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