घनी बस्तियों से शराब के ठेके हटाकर वाइन जोन में शिफ्ट करें, डीएम-कमिश्नर को भेजे महत्वपूर्ण सुझाव
आगरा, 26 अक्टूबर। शराब के नशे में कार चालक द्वारा सात लोगों के रौंदे जाने से हर कोई व्यथित है। पांच लोगों की मौत ने सभी को झकझोर दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने डीएम-कमिश्नर को पत्र भेजकर शराब के ठेकों को घनी बस्तियों से हटाकर वाइन जोन बनाकर शिफ्ट करने की मांग की है। इस संबंध में कानूनी नियमों का हवाला देते हुए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
नरेश पारस का कहना है कि शहर की दलित, मलिन एवं घनी आबादी वाली बस्तियों में हाल ही में शराब के ठेके खोले गए हैं। इन ठेकों के बाहर दिन-रात शराबियों और असामाजिक तत्वों की भीड़ लगी रहती है। खुले में ग्रुप बनाकर लोग शराब पीते हैं। ठेके के बाहर शराब पीकर लोग खुलेआम महिलाओं से छींटाकशी, गाली-गलौज, झगड़े और उत्पात मचाते हैं। शराब के नशे में लोग महिलाओं से अभद्र व्यवहार, छींटाकशी और मारपीट जैसी घटनाएँ कर रहे हैं, जिससे आम जनता विशेष रूप से महिलाएँ व छात्राएँ भय और असुरक्षा में जीने को मजबूर हैं। वह अपने घरों से निकलने में भय महसूस करती हैं। स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि हाल ही में आगरा के थाना न्यू आगरा अंतर्गत नगला बूढ़ी में हाल ही में शराबी चालक की बेकाबू कार ने सात निर्दोष नागरिकों को कुचल दिया, जिससे पांच लोगों की मृत्यु हो गई। यह घटना प्रशासनिक उदासीनता और सामाजिक संवेदनहीनता का प्रतीक है। इस घटना से पूरे क्षेत्र में गहरा आक्रोश व्याप्त है। यह पूरा मामला संविधानिक और कानूनी दृष्टि से अत्यंत गंभीर है। इन ठेकों के संचालन से लोक शांति भंग, महिलाओं की सुरक्षा पर खतरा, और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
नरेश पारस ने जिलाधिकारी और मंडलायुक्त को भेजे पत्र में कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 - इसके अनुसार प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। शराब ठेकों से उत्पन्न असुरक्षा इस अधिकार का घोर उल्लंघन है। अनुच्छेद 46 - इसके अनुसार अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक हितों की रक्षा का दायित्व राज्य का होता है। दलित बस्तियों में शराब के ठेके खोलना इस संवैधानिक दायित्व का प्रत्यक्ष उल्लंघन है।
भारतीय दंड संहिता की धाराएं 268, 290, 304A - लोक उपद्रव, सार्वजनिक असुविधा और लापरवाही से मृत्यु के लिए दंड का प्रावधान करती हैं।
अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 -दलित बस्तियों में भय, अपमान या उत्पीड़न उत्पन्न करने वाले कार्यों को अपराध घोषित करता है।
उत्तर प्रदेश आबकारी अधिनियम, 1910 की धारा 34 - जिला प्रशासन को ऐसे ठेकों को निरस्त करने का अधिकार देती है जो लोकशांति भंग करते हों।
मलिन, दलित तथा घनी बस्तियों में शराब के ठेके खोले जाने से इन सभी प्रावधानों की अवहेलना हो रही है।
पत्र में कहा गया है कि दलित, मलिन एवं घनी आबादी वाले आवासीय क्षेत्रों में संचालित सभी शराब ठेकों को तत्काल हटाया जाए। इन ठेकों को शहरों के बाहरी हिस्सों या औद्योगिक क्षेत्रों में “Wine Zone/ Controlled Zone” के रूप में सीमित किया जाए, जहाँ निगरानी, पुलिस नियंत्रण और कैमरा व्यवस्था सुनिश्चित हो। सीमित समयावधि (10 a.m - 10 p.m. की बिक्री व्यवस्था सुनिश्चित की जाए तथा कड़ाई से पालन हो। आबकारी विभाग के उन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए जिन्होंने संवेदनहीनता व लापरवाही बरतते हुए इन ठेकों को आबादी वाले क्षेत्रों में अनुमति दी, उनके विरुद्ध विभागीय जांच एवं दंडात्मक कार्यवाही की जाए। भविष्य में किसी भी ठेके की अनुमति से पहले जनसुनवाई ( Public Consultation) को अनिवार्य किया जाए। दलित बस्तियों, विद्यालयों, धार्मिक स्थलों और घनी आबादी वाले इलाकों में कोई नया शराब ठेका अनुमति बिना जनसुनवाई के न खोला जाए। एक समिति गठित की जाए जो यह समीक्षा करे कि किन क्षेत्रों में शराब ठेकों के कारण कानून-व्यवस्था और सामाजिक शांति प्रभावित हो रही है। संबंधित जिलों में महिला सुरक्षा हेतु स्थायी पुलिस गश्त, सीसीटीवी निगरानी और “सुरक्षित कॉल लाइन” की व्यवस्था की जाए।
सभी अनुमोदित ठेकों पर लाइसेंस पुनरीक्षण हर छह माह में किया जाए। ठेकों के 200 मीटर दायरे में विद्यालय, धार्मिक स्थल या आवासीय परिसर न हों। “नशा मुक्त शहर अभियान” के अंतर्गत शहरी और ग्रामीण स्तर पर नशा-निवारण केंद्र स्थापित किए जाएं। जनजागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से यह संदेश दिया जाए कि राज्य सरकार महिला सुरक्षा और सामाजिक संतुलन के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध है। आबकारी विभाग के लिए “Social Impact Assessment” को हर ठेका-स्वीकृति की पूर्व शर्त बनाया जाए। नशे से हुई दुर्घटनाओं में मृतकों के परिवारों को मुआवजा और अपराधियों के विरुद्ध कठोर दंड सुनिश्चित किया जाए।
पारस का कहना है कि यह मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, महिला सम्मान और संविधानिक मूल्यों का प्रश्न है। सामाजिक अन्याय और संवैधानिक दायित्वों की अवहेलना का है। दलित एवं गरीब बस्तियों में इस प्रकार के ठेकों का संचालन वहां के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रहा है और महिलाओं की गरिमा पर निरंतर आघात कर रहा है। उस समाज को नशे, हिंसा और भय की गिरफ्त में धकेल रहा है। इन ठेकों को “ Wine Zone” में स्थानांतरित करने का आदेश जारी किया जाए।
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