गुरु की महिमा सबसे ऊपर- डॉ. पंकज नगायच || गुरु का स्थान सृष्टिकर्ता से भी ऊँचा- डॉ. राकेश शुक्ला

गुरु की महिमा सबसे ऊपर- डॉ. पंकज नगायच
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, 
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।
गुरु की महिमा सबसे ऊपर, सबसे बड़ी, साक्षात परमब्रह्म जैसी है। गुरु वह नाव है जिस पर सवार होकर के इस जीवन रूपी समुद्र को ही नहीं, परम मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इसीलिए कहा है नानक नाम जहाज है, जो चढ़े सो होय पार।
यदि गुरु के चरणों में स्वयं के जीवन को समर्पित कर दिया जाए तो इसमें संदेह नहीं कि सभी कष्टों का निवारण तो होता ही है, जीवन सरल, सुगम, संपूर्ण, सुव्यवस्थित होता है।
गुरु पूर्णिमा पर सभी देशवासियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं गुरु के चरणों में नमन।।आज व्यास पूर्णिमा भी है क्योंकि आज का दिवस वेदव्यास महर्षि को भी समर्पित है।
- डा पंकज नगायच
अध्यक्ष निर्वाचित IMA आगरा।
सह संयोजक ब्रज क्षेत्र चिकित्सा प्रकोष्ठ भाजपा
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गुरु का स्थान सृष्टिकर्ता से भी ऊँचा- डॉ. राकेश शुक्ला
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान सृष्टिकर्ता से भी ऊँचा माना गया है। गुरु केवल ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि जीवन के वास्तविक अर्थ को प्रकट करने वाले दिव्य प्रकाश स्तंभ हैं। वे शिष्य को केवल पढ़ाते नहीं, उसे जीने की दृष्टि देते हैं, उसकी आत्मा को जाग्रत करते हैं और उसे उसके जीवन-धर्म की ओर ले जाते हैं।
ऋषि परंपरा से चली आ रही यह गुरु-शक्ति भारत की आत्मा है — जहाँ शब्द से पहले श्रद्धा, और ज्ञान से पहले समर्पण आता है। इस परंपरा में शिक्षा एक पवित्र साधना रही है, और गुरु उसके तपस्वी साधक।
संत कबीरदास जी की वाणी इसी गुरु-भाव की अमर अभिव्यक्ति है—
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥”
इस दोहे में गुरु की वह भूमिका प्रकट होती है जो ईश्वर से भी पहले पूजनीय है, क्योंकि गुरु ही हैं जो शिष्य को गोविंद, अर्थात ईश्वर के साक्षात्कार तक ले जाते हैं।
आज के युग में, जहाँ बाहरी चमक-दमक और भौतिक उपलब्धियाँ जीवन का केंद्र बन गई हैं, वहाँ गुरु की भूमिका और भी अधिक आवश्यक हो जाती है। आज का मनुष्य दिशा-विहीन, तनावग्रस्त और आत्मविस्मृत हो गया है। ऐसे में गुरु ही वह शक्तिपुंज हैं जो व्यक्ति को उसकी आत्मा से जोड़ते हैं, उसे स्थिरता, समता और विवेक प्रदान करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का यह पर्व केवल अतीत की परंपरा को नमन करने का दिन नहीं, यह वर्तमान को साधने और भविष्य को सँवारने का अवसर है। आज हमें फिर से उस गुरु-शक्ति की आवश्यकता है जो भीतर के भ्रम को काटे, जो हमें मूल्य-आधारित जीवन जीना सिखाए, जो हमें केवल सफल नहीं, बल्कि सार्थक बनाए।
गुरु का आशीर्वाद केवल एक मंत्र या शिक्षण नहीं होता, वह एक दृष्टि होती है — जो अंधकार में दीपक बनकर प्रकट होती है। इसी ज्योति को प्रणाम करने का यह दिवस है।
गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर हम सभी अपने गुरुजनों, शिक्षकों, संत-महापुरुषों और उन सभी व्यक्तित्वों को साष्टांग नमन करते हैं जिन्होंने किसी भी रूप में हमें सही दिशा दी, और जीवन को ऊर्ध्वगामी बनाया। यही भारतीय संस्कृति की वह जड़ है, जिससे हमारा मूल्य और हमारा मनुष्यत्व पल्लवित होता है। सादर नमन वंदन।
- राकेश शुक्ला 
महासचिव 
महामना मालवीय मिशन आगरा संभाग एवं कई अन्य संस्थाओं के पदाधिकारी
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