चैंबर चुनाव में कोषाध्यक्ष प्रत्याशियों का मामला "गले की हड्डी" बना, आज कर सकती है समिति बैठक, संविधान विशेषज्ञों की राय अलग

आगरा, 10 मार्च। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स के वार्षिक चुनाव में कोषाध्यक्ष पद के प्रत्याशियों का मामला "गले की हड्डी" बन गया है। चुनाव समिति ने इस पद के दोनों प्रत्याशियों के नामांकन पत्र विगत एक मार्च को जांच में सही घोषित कर दिए थे। अंतिम प्रत्याशियों की सूची भी चस्पा कर दी गई थी। लेकिन दोनों प्रत्याशियों की वैधता पर सवाल उठने के बाद चुनाव समिति ने सोमवार को फिर बैठक आहूत कर ली है।
दरअसल दोनों प्रत्याशियों के चैंबर संविधान के अनुरूप योग्य होने पर सवाल उठ रहे थे। लेकिन चुनाव समिति ने दोनों के पर्चे पास कर दिए। अब समिति को अपनी निष्पक्ष छवि बचाने की चिंता हुई है।
कोषाध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी ने विगत दिवस अपने प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी की योग्यता पर सवाल खड़े कर दिए। बताया गया कि उसने इस बारे में लिखित शिकायत भी की। इस बीच दूसरे प्रत्याशी ने भी अपने प्रतिद्वंद्वी के राजनीतिक दल से जुड़े होने के कागज चुनाव समिति के समक्ष रख दिए। विवाद बढ़ता देख चुनाव समिति सोमवार को पुनः बैठक आहूत कर ली है। 
बीच का रास्ता ढूंढने में जुटी चुनाव समिति 
इस बैठक में पहले संविधान के जानकार दो पूर्व अध्यक्षों को भी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाने का पर विचार किया गया, लेकिन बाद में उन्हें बुलाने का निर्णय टाल दिया गया। सूत्रों का दावा है कि चुनाव समिति कुछ ऐसा रास्ता ढूंढना चाहती है जिससे उसकी अपनी छवि बची रहे। संविधान के जानकार पूर्व अध्यक्षों को बुलाने से इसमें बाधा की आशंका है।
संविधान विशेषज्ञों की चली तो एक पर खतरा अधिक
जानकारों का कहना है कि यदि संविधान पर अमल किया जाए तो एक प्रत्याशी नियम 19 के तहत चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना जा सकता है, जबकि दूसरे प्रत्याशी की राजनीतिक दल से संबद्धता होने के कारण योग्यता खतरे में पड़ सकती है। इस मामले में एक पूर्व अध्यक्ष ने भाजपा के पूर्व विधायक और पूर्व प्रदेश महामंत्री (संगठन) केशो मेहरा से बात की। केशो मेहरा ने भाजपा के एक वर्तमान पदाधिकारी के हवाले से बताया कि दूसरा प्रत्याशी अभी भी भाजपा का पदाधिकारी है।
संविधान के नियम 19 में ही यह स्पष्ट लिखा है कि चार प्रमुख पदों का कोई भी प्रत्याशी नामांकन पत्र दाखिल करते समय किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी नहीं होना चाहिए। 
पत्र पर 20 तारीख तो पहले क्यों नहीं दिया?
पता चला है कि राजनीतिक दल से जुड़े प्रत्याशी ने भाजपा के एक पदाधिकारी का पत्र चुनाव समिति को दिया है, जिसमें कहा गया है कि यह प्रत्याशी उनकी पार्टी में पदाधिकारी नहीं है। कुछ जानकारों ने इस पत्र पर सवाल उठा दिए हैं। उनका तर्क है कि इस पत्र पर बीस फरवरी की तिथि अंकित है और नामांकन 22 फरवरी को भरा गया तो यह पत्र उसी दिन संलग्न क्यों नहीं किया गया। बहुत संभावना है कि यह पत्र "बैक डेट" में लिखाया गया हो। 
क्या कहते हैं चैंबर संविधान विशेषज्ञ
चैंबर संविधान विशेषज्ञों ने चुनाव समिति की प्रस्तावित बैठक पर ही सवाल उठा दिए हैं। उन्होंने कहा कि नामांकन पत्रों की जांच हुए दस दिन हो गए। उस दौरान जांच में क्यों अनदेखी की गई। चुनावों में नामांकन भरने, जांच और नाम वापसी की समय सीमा होती है और वह निकल चुकी है। चुनाव समिति के एक सदस्य ने कहा कि शिकायत अब मिली है, इसलिए समिति बैठक कर रही है। 
लेकिन संविधान के जानकारों का कहना है कि चुनाव समिति द्वारा अब नामांकन पत्रों पर नए सिरे से विचार संविधान सम्मत नहीं है। उनका कहना है कि यदि किसी नामांकन पत्र पर आपत्ति है तो चुनाव बाद इसे उचित मंच पर उठाया जा सकता है और चुनाव को चुनौती दी जा सकती है।
कुल मिलाकर यह मुद्दा बहुत ही रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। देखना होगा कि चुनाव समिति क्या निर्णय लेती है।
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