आगरा के सर्राफा व्यवसाई की याचिका पर प्रधान आयकर आयुक्त पर जुर्माना

प्रयागराज/आगरा, 18 अगस्त। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के  प्रधान आयकर आयुक्त (पीसीआईटी) पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन करने पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। उच्च न्यायालय ने कहा कि आयकर अधिकारी ने पिछले मूल्यांकन आदेश को रद्द करते समय और नई कार्रवाई शुरू करते समय आयकर अधिनियम 1961 की धारा 263 के तहत प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया। यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने मैसर्स एमएल चेंस की ओर से दाखिल याचिका पर दिया।
मामले में आगरा निवासी याची का आभूषणों का कारोबारी है। विभाग ने आयकर अधिनियम की धारा 143 (3) के तहत याची का मूल्यांकन पूरा किया। इसके बाद प्रधान आयकर आयुक्त ने याची को आयकर अधिनियम की धारा 263 के तहत नोटिस जारी कर दिया। नोटिस इस आधार पर जारी किया गया कि याची का मामला कंप्यूटरीकृत जांच के लिए चुना गया। इस आधार पर पहले से किए गए मूल्याकंन को खारिज कर दिया।
याची के अधिवक्ता ने कहा कि आयकर अधिकारी ने यह आदेश केवल राय में बदलाव के आधार पर और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ पारित किया है। तर्क दिया कि धारा 263 के तहत प्रक्रिया का पालन आदेश पारित करने से पहले कभी नहीं किया गया था।
याची के अधिवक्ता को कभी भी प्रधान आयकर आयुक्त के सामने पेश होने का मौका नहीं दिया गया। याची को अंतिम तिथि पर नोटिस प्राप्त हुआ। मामले में स्थगन अर्जी दाखिल की गई लेकिन उस पर कोई विचार नहीं किया गया। इस तरह से प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन किया गया। हालांकि, आयकर विभाग के अधिवक्ता ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन से इन्कार किया।
मुंबई के मामले को आधार बनाया
अदालत ने कहा कि स्थगन अर्जी पर कोई आदेश पारित नहीं किया गया और मैनुअल आदेश पर अधिवक्ता ने हस्ताक्षर से इन्कार किया। इससे दो बिंदुओं पर संदेह पैदा होता है। एक कंप्यूटर जनित आदेश और दूसरा मैनुअल आदेश। प्रतिवादी प्राधिकरण की कार्यप्रणाली के बारे में गंभीर संदेह पैदा करता है। कोर्ट ने व्हर्लपूल कॉरपोरेशन बनाम रजिस्टर ऑफ ट्रेड मार्क्स मुंबई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को आधार बनाया। कहा कि इसमें याची को बचाव के लिए कोई अवसर नहीं दिया गया।
________________

ख़बर शेयर करें :

Post a Comment

0 Comments