मोदी फिर सत्ता में आयेंगे, रामायण को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कराएंगे- जगदगुरु रामभद्राचार्य
आगरा, 03 अप्रैल। तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, मानस मर्मज्ञ जगदगुरु रामभद्राचार्य ने आज यहां कहा कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार एक बार फिर सत्ता में आएगी और मुझ सहित सभी संत मिलकर रामचरित मानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कराएंगे। इसके लिए सभी संतजन मिलकर सरकार पर दबाव बनाएंगे कि वह इस प्रस्ताव को संसद में पारित कराए।
धर्म चक्रवर्ती संत के रूप में विख्यात रामभद्राचार्य जी श्री राम कथा का श्रवण कराने के लिए इन दिनों शहर में आए हुए हैं। रामकथा का आयोजन शाहगंज स्थित कोठी मीना बाजार में आज सोमवार से शुरू हुआ। यह कथा 11 अप्रैल तक रोजाना सायं चार से सात बजे तक चलेगी। रामभद्राचार्य जी द्वारा रामकथा का आगरा में पहली बार श्रवण कराया जा रहा है। पहले दिन हालांकि करीब दो घंटे देरी से वे व्यास पीठ पर विराजमान हुए, तथापि उन्हें सुनने के लिए लोगों में अपूर्व उत्साह था। शाम चार बजे से कथा रात आठ बजे के बाद समाप्ति तक पंडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा।
अपनी विशिष्ट शैली में उन्होंने कथा का पान कराते हुए सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार भी किए और लोगों को सत्संग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
रामलला के पक्ष में गवाही बनी थी कोर्ट में आधार
बता दें कि पद्मविभूषण रामभद्राचार्य वही संत हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के हवाले से गवाही दी थी। श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वे वादी के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई। कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई। उसमें जगदगुरु द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए। जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है, विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है। जगदगुरु के वक्तव्य ने फैसले को एक आधार प्रदान किया।
दो माह की उम्र में चली गई थी आंखों की रोशनी, 22 भाषाओं के ज्ञाता, 80 ग्रंथों के रचनाकार
यह भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार है। एक व्यक्ति जो भौतिक रूप से आंखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिए जा रहे थे। यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है। सिर्फ दो माह की उम्र में जगद्गुरु रामभद्राचार्य की आंखों की रोशनी चली गई, आज उन्हें 22 भाषाएं आती हैं, 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। पद्मविभूषण रामभद्राचार्यजी एक ऐसे संन्यासी हैं जो अपनी दिव्यांगता को हराकर जगद्गुरु बने। रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं और आजीवन कुलाधिपति हैं। और, और यह उनका त्याग ही है कि उन्होंने इस विश्वविद्यालय को सरकार को सौंपने की पेशकश की है।
____
Post a Comment
0 Comments