मुगलकाल की रॉड-क्लैंप बन रहे ताजमहल के संरक्षण में मुसीबत
आगरा, 10 मार्च। मुगल काल में स्मारकों के निर्माण में इस्तेमाल की गईं लोहे की रॉड और क्लैंप अब स्मारकों के संरक्षण में मुसीबत बन रहे हैं। उनमें जंग लगने की वजह से पत्थर चटक रहे हैं। ताजमहल की यमुना किनारा स्थित उत्तर-पश्चिमी बुर्जी में लगी लोहे की रॉड की जगह पर स्टेनलेस स्टील या कॉपर की रॉड लगाई जाएगी। यहां टूटी जाली व छज्जे के पत्थरों को भी बदला जाएगा।
ताजमहल स्थित शाही मस्जिद के सामने बनाया गया मेहमानखाना हो या फिर बुर्जियों के सामने बनाई गईं बुर्जियां, इससे उसकी सुंदरता में चार चांद लगते हैं। स्मारक की यमुना किनारा स्थित उत्तर-पश्चिमी बुर्जी का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा कराया जाएगा। यहां जगह-जगह से पच्चीकारी के पत्थर निकल गए हैं।
छज्जे व जाली के पत्थर कुछ जगह से टूटे हुए भी हैं। यहां पच्चीकारी के निकले हुए सफेद संगमरमर के साथ ही काले व पीले रंग के पत्थर भी लगाए जाएंगे। इसके साथ ही बुर्जी के ऊपर लगे पिनेकल को भी चेक किया जाएगा। मुगल काल में पिनेकल में लोहे की रॉड इस्तेमाल की गई थीं। अब जंग लगने पर रॉड के फूलने पर पत्थर चटक रहे हैं। संरक्षण कार्य के दौरान बुर्जी के पिनेकल को ऊपर से खोलकर चेक किया जाएगा।
लोहे की रॉड के स्थान पर कॉपर या स्टेनलेस स्टील की रॉड लगाई जाएगी। एएसआई ने इसके लिए निर्माण सामग्री की आपूर्ति को 4.08 लाख रुपये का टेंडर किया है। संरक्षण कार्य को बसई घाट की तरफ पाड़ बांधी जाएगी। संरक्षण कार्य पर निर्माण सामग्री व मजदूरी समेत 30 लाख रुपये से अधिक व्यय होंगे।
अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. राजकुमार पटेल ने बताया कि ताजमहल की उत्तर-पश्चिमी बुर्जी के संरक्षण में लगभग छह माह का समय लगेगा। अधिक ऊंचाई पर काम होने की वजह से अधिक समय लगता है। बुर्जी के पिनेकल की रॉड की स्थिति को देखने के बाद उसे बदला जाएगा।
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