आवामी शायर नज़ीर अकबराबादी की विरासत और आज के हालात पर चिंतन

आगरा, 03 अगस्त। "आवामी शायर नज़ीर अकबराबादी की विरासत और आज के हालात" पर नज़ीर की रचनाओं की संगीतमय प्रस्तुति आगरा इप्टा द्वारा दिलीप रघुवंशी के नेतृत्व में दी गई। आदमीनामा, रीछ का बच्चा, सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, कन्हैया का बालपन जैसी रचनाओं की प्रस्तुति हुई।  
संगोष्ठी का संचालन  करते हुए जनवादी लेखक संघ के रमेश पंडित ने कहा कि नज़ीर अकबराबादी 245 साल बाद भी प्रासंगिक हैं। जनवादी महिला समिति की संयुक्त सचिव मधु गर्ग ने कहा कि हमें इतिहास के पन्नों को पलटने की ज़रूरत है। हमें याद रखने की ज़रूरत है कि हमारे यहां यदि सूरदास हैं, तो रसखान भी हैं। आजादी की लड़ाई में बहादुर शाह ज़फ़र हैं तो लक्ष्मीबाई भी हैं ।‌ वर्ण-व्यवस्था की संस्कृति को ललकारने वाले सावित्री बाई फुले, ज्योति बा फुले, फातिमा शेख हैं तो सूफी संत कबीर, रैदास, बुल्ले शाह, तुकाराम हैं। इसी विरासत को आगे बढ़ाने वाले नज़ीर अकबराबादी हैं जिन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता की बात कही। 
प्रगतिशील लेखक संघ की डा. ज्योत्सना रघुवंशी ने कहा कि नज़ीर आगरा के थे और यहां की मिट्टी में उनकी शायरी घुली थी किन्तु अफ़सोस है कि आज नफ़रत की राजनीति ने उनकी विरासत को भुला दिया है।‌ भाईचारा मंच से डा नसरीन बेगम ने नज़ीर अकबराबादी के जीवन की रोचक घटनाओं और उनकी मशहूर नज़्मों को पढ़कर सुनाया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा रामवीर सिंह ने कहा कि नज़ीर ने सत्ता के निमंत्रण को कभी स्वीकार नहीं किया। परमानंद शर्मा, भगवान स्वरूप योगेंद्र, असलम खान, मुक्ति किंकर ने गीत प्रस्तुत किये तथा ढोलक पर संगत की राजू ने। नजीर अकबराबादी की रचना बुढ़ापा पर अभिनय पेश किया जय कुमार ने। जनवादी महिला समिति की जिला सचिव किरन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। 
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